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नन्दजी का भाण्डीर-वन गमन


           (७)
एक दिवस श्रीकृष्णचन्द्र को,
  लिये गोद में नन्द सुजान,
चले गये भाण्डीर-कुञ्ज में,
  उर प्रेरक थे श्रीभगवान्.
दी आज्ञा गोपों को व्रजपति-
  ने गायों को लाने की,
स्वयं खड़े थे बाट देखते,
  निज गायों के आने की.

           (८)
सहसा नभमण्डल में ऐसी,
  श्याम-घटाएँ घिर आयीं,
अन्धकार छा गया कुञ्ज में,
  प्रभु ने लीला दिखलायी.
वेग-सहित बह चला पवन,
  आ गया वहाँ अब झंझावात,
टूट रहे थे वृक्ष-पत्र  सब,
  पाकर प्रबल पवन आघात.
 
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